देहरादून।
उत्तराखंड सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए एक सराहनीय और मानवीय निर्णय लिया है। अब राज्य की पुलिस केवल कानून व्यवस्था ही नहीं संभालेगी, बल्कि समाज की रीढ़ माने जाने वाले बुजुर्गों की देखभाल और सहयोग में भी सक्रिय भूमिका निभाएगी। इस नई पहल के तहत गांव-गांव और घर-घर जाकर पुलिसकर्मी बुजुर्गों का हालचाल जानेंगे और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेंगे।
मुख्य बिंदु:
🔹 जिलाधिकारियों को निर्देश: राज्य सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने क्षेत्रों में रह रहे वरिष्ठ नागरिकों की पहचान करें और उनकी देखभाल की विशेष व्यवस्था सुनिश्चित करें।
🔹 हर थाने को जिम्मेदारी: सभी पुलिस थानों को आदेशित किया गया है कि वे अपने क्षेत्र के बुजुर्गों की सूची तैयार करें और हर महीने उनके घर जाकर उनकी स्थिति का जायजा लें।
🔹 तत्काल सहायता का प्रावधान: किसी भी आपात स्थिति में पुलिस को बुजुर्गों को त्वरित सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।
🔹 कानूनी संरक्षण भी सख्त: ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम, 2007’ और ‘उत्तराखंड वरिष्ठ नागरिक कल्याण नियमावली, 2011’ के तहत अगर कोई संतान अपने माता-पिता की उपेक्षा करती है, तो उस पर ₹5000 जुर्माना या 3 माह की जेल अथवा दोनों की सजा हो सकती है।
🔹 जागरूकता और प्रचार: वृद्धजन कल्याण योजनाओं का जिलावार प्रचार किया जाएगा ताकि बुजुर्गों को इन योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।
🔹 पलायन प्रभावित गांवों पर खास फोकस: खासकर उन पहाड़ी और सुदूर क्षेत्रों में, जहां पलायन के चलते बुजुर्ग अकेले रह गए हैं, सरकार विशेष ध्यान देगी। इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं, दवा और दैनिक जरूरतों की पूर्ति को प्राथमिकता दी जाएगी।
सामाजिक संगठनों का समर्थन
संयुक्त नागरिक संगठन ने इस पहल का समर्थन करते हुए सरकार को धन्यवाद दिया है। संगठन के कार्यकारी उपाध्यक्ष गिरीश चंद्र भट्ट और महासचिव सुशील त्यागी ने पहले ही मुख्यमंत्री से मुलाकात कर भरण-पोषण नियमों को कड़ाई से लागू करने की मांग की थी।
सरकार की संवेदनशील सोच
सरकार की यह योजना उत्तराखंड को बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित, संवेदनशील और आदर्श राज्य बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल सामाजिक उत्तरदायित्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राज्य सरकार विकास के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
