नैनीताल। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर आरक्षण रोस्टर विवाद पर गुरुवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खण्डपीठ में इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पंचायत चुनावों के लिए तैयार किया गया संशोधित आरक्षण रोस्टर कोर्ट के समक्ष पेश किया गया।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर व मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने लंबी पैरवी करते हुए 9 जून को अधिसूचित रूल्स और 14 जून को प्रकाशित गजट के तहत तैयार किए गए आरक्षण रोस्टर को विधिसम्मत ठहराने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग के लिए गठित समर्पित एकल आयोग की रिपोर्ट के बाद ही यह नई व्यवस्था लागू की गई है, जिसमें पूर्व के रोस्टर को शून्य घोषित करना एकमात्र विकल्प था।
इसी बीच, याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने अदालत को अवगत कराया कि सरकार ने जिस एकल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पंचायत चुनावों को लंबे समय तक टाला, वह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई, जबकि इसे सार्वजनिक डोमेन में होना चाहिए था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 243 (टी) और (डी) सहित उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि आरक्षण में रोस्टर का पालन संवैधानिक बाध्यता है।
कोर्ट ने सरकार द्वारा पेश किए गए आरक्षण रोस्टर के अध्ययन के लिए याचिकाकर्ताओं को शुक्रवार 27 जून तक का समय दिया है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी मंशा पंचायत चुनावों को टालने की नहीं है, लेकिन चुनाव की वैधता के लिए नियमों का पालन अनिवार्य है।
अब इस महत्वपूर्ण मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी, जिसमें याचिकाकर्ता अपना पक्ष विस्तार से रखेंगे। हाईकोर्ट के इस निर्णय पर अब पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह फैसला पंचायत चुनावों के भविष्य को तय कर सकता है।
